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सूर्य और जल प्रकृति के दो परम तत्व हैं जिनके मिलने से सृष्टि का निर्माण हुआ | सर्वप्रथम जलीय जीवों की उत्पत्ति हुई, शरीर त्यागने के उपरान्त यह जीव किनारे इकट्ठा होते रहे जिनके इकट्ठा होने से ठोस पदार्थ का निर्माण हुआ, जिससे पृथ्वी जैसे अनेकों गृह बने | इसी क्रमिक विकास के चलते प्रकृति के सबसे प्रिय और उन्नत जीव 'मानव' का विकास होता है |
आत्मा सूर्य की वह संरचना है जिसे जल का गैसीय भाग रोकता है, इसके चारों तरफ मन को रोकने के लिए चुम्बकीय गुण क्रियाशील होता है | मन इच्छाशक्ति को जन्म देता है |
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पृथ्वी के अन्य सभी जीव एक निश्चीत गुण धारण किये रहते हैं | मनुष्य भी एक शक्तिशाली, महान और निश्चीत गुण 'भाव' लेकर आता है, परन्तु इसे आज भुला दिया गया है और कर्म को ही उसका गुण या सार मान लिया गया है | इच्छाशक्ति प्रकृति का सम्पुर्ण सत्य है | भाव ही मानव के गुण हैं | मानव को उत्पन्न करने का प्रकृति का यही मुख उदेदश्य है कि वह अपने अच्छे भाव से प्रकृति और समाज में सुगन्ध बिखेरें | आज ९८ प्रतिशत लोग बुरे भाव धारण किये हुए हैं जिससे प्रकृति में दुर्गन्ध फैल रही है | समाज में व्याप्त कुरीतियों, बुराईयों और बिमारियों का यह प्रमुख कारण है | मानव जब कुछ सोचता है तो उस भाव से ऊर्जा निकल कर प्रकृति में मिल जाती है और जिस लक्ष्य के लिए छोड़ी गई है उसे पूर्ण करने में लग जाती है | यह पूर्णतः विज्ञान है | मानव को अपना गुण पहचान कर, मानव समाज और प्रकृति को खुशहाल बनाने के लिए अच्छे भाव छोड़ने चाहिए | अच्छे भाव रखने से हमारी इच्छाशक्ति भी मजबूत होती है |
अन्न पर भी भाव का असर पड़ता है | हम सभी लगभग एक ही तरह का अन्न ग्रहण करते हैं परन्तु हम सभी अलग-अलग स्वभाव धारण किए हुए हैं | अन्न के ग्रहण करते समय जो भाव रहते हैं वैसे ही गुण उसके अन्दर प्रभावी हो जाते हैं | इसी वजह से एक ही स्थान पर एक ही सा भोजन खाने वालों में हम पूर्णतः भिन्न भिन्न प्रविर्त्ति पाते हैं |
मानव को महामानव बनाने का यंत्र ध्यान है
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ध्यान से भी हम अपनी इच्छाशक्ति को मजबूत कर सकते हैं और अपने भावों को शुद्ध कर सकते हैं | ध्यान एक पूर्ण वैज्ञानिक क्रिया है जिससे मानव शक्तिशाली बनता है | ध्यान के लिय हमें एक विषय को चुनना होता है, चाहे वह एक व्यक्ति हो, वस्तु हो या कोई मूर्ति हो, जिस पर आप का विश्वास हो | इस तरह से ध्यान जब एक निश्चीत बिंदु पर केन्द्रित किया जाता है तो उस प्रकार कि ऊर्जा हमारे अन्दर बनने लगती है (चुम्बकीय विज्ञान के तहत) |
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