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जैसे-जब हम कोई अपराधिक दृश्य देखते हैं तो हमारे अन्दर घबराहट होने लगती है | वहीं जब हम कोई अच्छा दृश्य देखते हैं तो मन उमंगित होता है, आनन्द की स्तिथि होती है | ठीक उसी प्रकार जब हम एक इष्ट बनाकर उस को देखेंगे तो उनकी उर्जा का प्रवाह हमारे अन्दर होने लगेगा | हमारे अन्दर से नकारात्मक उर्जा ख़त्म होगी, अच्छी उर्जा का प्रवाह होगा | प्रकाश हमारे अन्दर आयेगा, जो उत्साह और इच्छाशक्ति को मजबूत करता है और हम अपनी भावना से उर्जा का प्रवाह कर सकते हैं, जो की एक सुगंध बनकर प्रकृति में फैलती है |
हमारे भाव की उर्जा हवा के रूप में वातावरण में विधमान रहती है, फिर अपने अनुकूल विचारों में श्वसन क्रिया के माध्यम से मिलती है जहाँ उसका विस्तार हो सकता है | इस प्रकार वह शक्ति के रूप में कार्य करती है, इससे दो लाभ होते हैं - प्रथम प्रकृति में सुगंध छोड़ना, प्रकृति के निर्माण में सत्यता स्थापित करने में सहयोग करना | दिव्तीय अनुकूल वातावरण ना पाकर बुरे भाव के बैक्टीरिया हमारे अन्दर जन्म नहीं ले पाते | आज के समय में असंख्य बिमारियों का कारण दूषित विचार ही है | जानवरों में भावनात्मक प्रदूषण ना होने के कारण उनमें बीमारियाँ नहीं पायी जाती हैं |
ध्यान का सुक्षम रूप-किसी को भी चुन कर अपने विचारों को उसके ऊपर रोक कर सिर्फ दृष्टा बनें |
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मानव के स्वरूप को दो गुणों में देखा जाता है- दृष्टा और कर्त्ता | जब वह विचारशील होता है, तब वह कर्त्ता होता है | जिस तरह के विचार उसके अन्दर बनते हैं उस तरह की ऊर्जा निकलती है | विषय को पूर्ण करने के लिए क्रियाशील हो जाती है | वहीँ दृष्टा तब बनता है जब वह सोता है उस का मन प्रकृति में निकलकर प्रकृति की घटनाओं को देखता है (अपने से सम्बन्धित घटनाएँ जो कि स्वप्न के रूप में उसे याद रहती हैं) | ध्यान करते समय उसे दृष्टा का रूप बनाना है कि वो विचार शुन्य रहे और सिर्फ इष्ट को देखने कि क्रिया करे | चलते, फिरते, जागते जिस रूप में भी चाहे ज्यादा से ज्यादा अपने इष्ट को देखने का प्रयास करे तो एक समय आता है कि तीसरे नेत्र में उसके इष्ट कि आकृति बनने लगती है | जिस भाव कि ऊर्जा उस आकृति से निकाली जाती है वह और शक्तिशाली हो जाती है | अपने लक्ष्य को जल्दी भेदती है और अधिक फैलती है |
प्रकृति में आकृति का विशेष महत्व है | वैज्ञानिक लोग पदार्थ कि ऊर्जा को पहचान कर उस को एक आकृति देते हैं, तो उससे पदार्थ में एक शक्ति आ जाती है, जो कि पहले बिखरी हुई होती है | उसी प्रकार जब ऊर्जा को एक आकृति दी जाती है तो वह और शक्तिशाली हो जाती है | शंख कि प्राक्रतिक बनावट से हवा गुजारने पर उसमे एक विशिष्ट ध्वनि निकलती है | उसकी बनावट में बदलाव करने पर वह ध्वनी नहीं निकलेगी | जैसे सभी वैज्ञानिक उपकरणों में एक आकर होता है, तभी ऊर्जा निकलती है | आकृति का यह महत्व है कि सूर्य की आकृति को थोडा छोटा या बड़ा करने का प्रयास करें तो सृष्टि ही संभव नहीं हो पाएगी | फल-फूल, वृक्ष या पेड़-पौधे अपने गुण को जिस प्रकार से देना चाहते हैं उस तरह की आकृति उसके अन्दर का जीव-प्रकाश स्वत: ही बना देता है (केले के पेड़ से यदि गुलाब उगाने का प्रयास करेंगे तो ये नहीं होगा) हाथी या चींटी की आकृति अलग है क्योंकि उसके गुण उसी आकृति से सटीकता से प्रेषित हो सकते हैं | वह आकृति उसके अन्दर का जीव-प्रकाश वैसे ही बनता है |
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