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मानव जो पृथ्वी का सबसे दुलारा है, जिसे प्रकृति ने सब कुछ दिया है, वह अपनी इच्छाशक्ति से गेंदे के फूल जैसी सुगंध भी दे सकता है और गुलाब जैसी भी | अपने भाव और इच्छाशक्ति से ऐसे गुण छोड़ सकता है जो प्रकृति में सुगंध छोड़े और विस्तार करे | मानव जहाँ अपनी इच्छाशक्ति से महात्मा बुद्ध और महात्मा गांधी बना है, वहीँ एक-दो घटनाओं से चोट खाकर डाकू भी बे जाता है | (प्रकृति के अन्य जीव जिस निमित्त पैदा होते हैं उसी गुण को देकर जाते हैं) |
मानव में ही यह विशिष्टता है कि वह अपने ज्ञान, साधना औए इच्छाशक्ति से अपने गुण को परिवर्तित कर सके | यदि वह बुरे भाव लेकर पैदा हुआ है तो वह अपनी भावना से अच्छे भाव प्रकृति से लेकर अच्छे गुणों का स्वामी बनकर अपनी सुगंध बिखेर सकता है | इस प्रकार अच्छे भाव रखने पर गंदे बैक्टीरिया को अनुकूल वातावरण ना मिल पाने के कारण वे मानव के अन्दर पनप नहीं पाते | यही जब बहुतायत में होता तो प्रकृति शान्त होती | बीमारियां, कुरीतियां समाप्त होंगी और प्रकृति एवं समाज का कल्याण होगा | चारोँ तरफ सुगंध ही सुगंध हो गी | वह युग प्रेम, सत्य, शान्ति और आनन्द का होगा |
| सृष्टि पदार्थ से बनी होती है | पदार्थों कि ऊर्जा प्रकृति में सन्तुलन का कार्य करती हैं | जब मानवीय हस्ताक्षपे से पदार्थ कि कोशिकाएं कमजोर होने लगती हैं और सन्तुलन बिगड़ता है तब प्राकृतिक आपदा आती है जैसे भूकंप या जल का स्तर बढ़ना | यह प्रक्रिया तरंग पैदा करती है एवं सूर्य प्रकाश के सहयोग से जल में जाकर जैविक क्रिया करती है | जिससे पुन: कोशिकाओं का निर्माण होता है और प्रकृति में वही ऊर्जा संचालित होने लगती है, जी सृष्टि के निर्माण में सहायक होती है | यही प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है | |
प्रकृति जब देखती है कि मानवीय न्याय मानव समाज को बचाते हुए प्रकृति का रक्षक नहीं बन पा रहा है तो विशेष मानव 'ईश्वर' को पैदा करती है जो प्रकृति के ही सहयोग से मानव समाज को न्याय देते हैं और प्राकृतिक रक्षा का दर्शन भी देते हैं जो मानव समाज के लिए एक आदर्श बन जाता है और भविष्य के लिए सत्य के रूप में उसकी उत्पत्ति होती है |
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